Thursday, January 26, 2012

इंतज़ार........

जरूरी लंबित कार्य निस्‍तारण के लिए कुछ दिनो बिजनौर आया हुआ हूं लेकिन गणतंत्र दिवस पर दिल्‍ली जाना था, बाद में तय हुआ कि नहीं जाऊंगा, मगर यह जानते हुए भी कि मैं नहीं आऊंगा, दिल नहीं माना और उन्‍हें मेरा इंतजार रहा, इस मौंजूं पर अभी अभी एक दोहा हुआ------ 


        तय था आओगे नहीं, फिर भी बारम्‍बार ।
        हर आहट पर चौंककर, देखा मैंने द्वार ।।

Wednesday, January 25, 2012

गणतन्‍त्र की 62वीं वर्षगांठ पर

फख्र भी होता है कि हमारे गणतन्‍त्र को 61 वर्ष हो गए, साथ ही मन उदास भी हो जाता है, कि कहीं बहुत कुछ है जो अभी होना बाकी है, गणतन्‍त्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ कुछ दोहे आपके लिए---
          कैसा ये गण तन्‍त्र है , कैसा है ये राज ।
          जिसकी मरजी तोड़ दे, संविधान को आज ।।
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          जिसके पीछे भीड़ है, उसके सिर है ताज ।
          देशभक्‍त को देश में, कौन पूछता आज ।।
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          झूठे हैं ये आंकडे़, देश बना खुशहाल  ।
          बिना दवाई क्‍यों मरा, फिर गरीब का लाल ।।
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          किसको अब तक याद है, लोकतन्‍त्र का मंत्र ।
          गण पर हावी हो गया, आज उसी का तंत्र ।।
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          स्‍वप्‍न न हो जाए कहीं, देखो ये गणतंत्र ।
          कुछ तो सोचो, कुछ करो, रहना अगर स्‍वतंत्र ।।
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Monday, January 23, 2012

वसंत

ज्‍योंहि मौसम में वासंती बयार बहने लगती है, सर्दी के बावजूद युवा मन में कुछ कुछ होने लगता है, इसी प्रसंग पर करीब दस बरस पहले लिखा, नायिका को केन्द्रित करता मेरा एक दोहा-

               बैठ बसंती डाल पर, कोयल कुहके रोज ।
               गोरी कब तक ढोएगी, इस यौवन का बोझ ।।

Sunday, January 15, 2012

धूप की ओट...

मकर संक्रांति के साथ ही मौसम में ऋतुराज बसंत के आगमन की दस्‍तक होने लगती है,इस खूबसूरत मौसम की शुरूवात पर आप सभी को शुभकामनाएं---------

                सूरज दादा ने तजा,  अब कोहरे का कोट ।
                घर आए ऋतुराज के, लिए धूप की ओट ।।

Saturday, January 14, 2012

मकर संक्रांति की बधाई

आया  सूरज  मकर  में, बढा धूप का  ताप ।
मौसम ने हंसकर सुनी, वासंतिक पदचाप ।। 


आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं.......

Friday, January 13, 2012

अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव 2012

अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव,दिल्‍ली  के अंतिम दिन हंसराज कालेज में आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय कवि गोष्‍ठी में कविता पाठ करते कवि मनोज अबोध, साथ में बैठे हैं संचालक-नरेश शांडिल्‍य और अध्‍यक्ष सीतेश आलोक जी ।

अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव 2012

अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव,दिल्‍ली  के अंतिम दिन हंसराज कालेज में आयोजित अंतरराष्‍ट्रीय कवि गोष्‍ठी के दौरान प्रसिद्ध कवि संपादक विजय किशोर मानव के साथ कवि मनोज अबोध, अमेरिका ये आई कवियत्री राजश्री एवं भारत भूषण आर्य ।

अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव 2012

अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव,दिल्‍ली  के अंतिम दिन महत्‍वपूर्ण संवाद के बाद राहुल देव के साथ कवि मनोज अबोध, दीक्षित दनकौरी एवं कवियत्री सारिका त्‍यागी

Thursday, January 12, 2012

अन्‍तरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव दिल्‍ली

हंसराज कालेज में हिन्‍दी उत्‍सव के दूसरे दिन सत्र समाप्ति के बाद शोध छात्रा भारती, डा0 सुधा उपाध्‍याय,मनु सिन्‍हा, अक्षरम के सम्‍पादक नरेश शांडिल्‍य के साथ साहित्‍यकार मनोज अबोध ।

अन्‍तरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव दिल्‍ली

हंसराज कालेज दिल्‍ली में 10वें अंतरराट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव के  मौके पर प्राध्‍यापिका सुधा उपाध्‍याय, प्रसिद्ध साहित्‍यकार प्रकाश मनु, चर्चित कथाकार डा0अजय नावरिया और विवेक मिश्रा के साथ कवि मनोज अबोध ।

अन्‍तरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव दिल्‍ली

हंसराज कालेज दिल्‍ली में 10वें अंतरराट्रीय हिन्‍दी उत्‍सव के दूसरे दिन दोपहर-भोज के मौके पर हरियाण साहित्‍य अकादमी के अध्‍यक्ष डा0श्‍याम सखा श्‍याम, दीक्षित दनकौरी,अक्षरम़ के नारायाण कुमार और आकाशवाणी दिल्‍ली के निदेशक डा0 लक्ष्‍मी शंकर वाजपेयी के साथ कवि मनोज अबोध ।

Monday, January 9, 2012

पाला शीत कुहास

इन कडाके की सर्दियों में बडी शिद्दत से अम्‍मा  की याद आ जाती है कि किस तरह रजाई में दुबका कर रखती थीं और सब खाना पीना वहीं बिस्‍तर पर देती थी कि कहीं सर्दी न लग जाए । हाथ से बुन कर स्‍वीटर, दस्‍ताने ,टोपी, मौजे, सभी कुछ तो कितना अच्‍छा बुनकर पहनाती थी । फिर याद आता है कि क्‍या उनके बुढापे में, उनकी कमजोरी में मैं भी उतना ही उनका खयाल रख पाया ...और तो और, उनके साथ भी न रह पाया । आज भी यह दर्द सालता है । एक दोहा देखें----
                      पाला  शीत  कुहास का, कोई नहीं  प्रभाव
                      बूढी आंखों को खले.., बेटा तेरा अभाव ।।

Sunday, January 8, 2012

शीत ऋतु की रात

नगर महानगर की चकाचौंध के बीच, सडक के किनारे, रेडलाइट पर, फलाई ओवर के शेड में, पार्क के किनारे कितने नंगे-अधनंगे लोग इस देश की तरक्‍की और विकास पर नाज कर रहे हैं....उनके लिए कुछ न कर पाने का अफसोस  अपनी जगह है-------

                 उन पर भारी बीतती, शीत ऋतु की रात
                 सिर पर जिनके छत नहीं, हैं अधनंगे गात ।।

Saturday, January 7, 2012

रातें ये.....

आजकल की ठिठुरन भरी सर्दियों में उन प्रेयसियों की व्‍यथा कहता, जिनके प्रियतम ऐसे मौसम में उनसे दूर हैं, एक पुराना दोहा याद आ रहा है---------

                रातें ये ठिठुरन भरी, अस्थिय बजत मृदंग
           तू  भी कोसों दूर है.., अंग छिडी है  जंग ।।।

Friday, January 6, 2012

दोनों से है सामना...

हाड कंपाती सर्दियां, रूह कंपाते लोग ,
दोनों से है सामना, ये कैसा संयोग ।

Wednesday, January 4, 2012

धूप

देखा मैंने कल सुबह,  ऐसा नृत्‍य अनूप
पत्‍तों की सुरताल पर, थिरक रही थी धूप ।।