Saturday, October 12, 2013

एक मुक्‍तक.....

दुर्गाष्‍टमी,महानवमी और विजय दशमी पर सभी मित्रों को ह्रदय से मंगलकामनाएं----

अन्‍तर की शक्तियों को जगाने की रात है ।
श्रद्धा से शीश अपना झुकाने की रात है  ।
देकर के अर्घ्‍य अश्रुओं का,हाथ जोड़कर
सच्‍चे ह्रदय से मॉं को मनाने की रात है ।।
-----मनोज अबोध

Monday, September 30, 2013

एक ग़ज़ल........................

बनाकर  बेवजह  मशहूर  मुझको
न कर यूँ ख़ुद से इतना दूर मुझको

तुम्हारी चोट पहुँचाने की आदत
कहीं कर दे न चकनाचूर मुझको
 
सहे जाती है हर ग़म मुस्कुराकर
कभी करती नहीं मजबूर मुझको

सफ़र को बीच में ही छोड़ दूँ मैं
नहीं ये फैसला मंज़ूर मुझको

रिसे हैं उम्र-भर मेरी रगों से 
मिले हर सिम्त वो नासूर मुझको

अभी टूटे न इन साँसों की डोरी
निभाने हैं कई दस्तूर मुझको

अलग ये बात है, मैं जी न पाया
मिली थी ज़िन्दगी भरपूर मुझको
              ---- मनोज अबोध

Thursday, July 4, 2013

एक ग़ज़ल...............

एक टूटी छत लिए बरसात का स्वागत करूँ  ।
अब भी क्या बिगड़े हुए हालात का स्वागत करूँ

अपना घर जलने के ग़म को भूल भी जाऊँ,मगर
बस्ती-बस्ती किस तरह आपात का स्वागत करूँ

मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ

बाप हूँ, ये सच है लेकिन, इसका ये मतलब नहीं
रह के चुप, बच्चों के हर उत्पात का स्वागत करूँ

हाथ मेरा, तेरे हाथों में जो रह पाए यूँ ही
मुस्कुराकर मैं सभी हालात का स्वागत करूँ

जब खुलें नींदें मेरी तेरे नयन की भोर हो
तेरी ज़ुल्फ़ों की घनेरी रात का स्वागत करूँ
             0 मनोज अबोध

Sunday, June 9, 2013

एक ग़ज़ल.........................

सच का किसने साथ दिया है देखो तो
साया बनकर कौन खड़ा है देखो तो

पाँव नहीं थे उसके, केवल चिंतन था
फिर भी, मेरे साथ चला है देखो तो

पहुँच गए है दोनों यूँ तो मंजि़ल तक
किसने किसका साथ दिया है देखो तो

वो भी निकला जिस्म की चाहत वालों में
एक भरोसा टूट गया है देखो तो

लश्कर वालो, रफ्तारों पर ज़ब्त करो
इक दीवाना छूट गया है देखो तो
-------------   मनोज अबोध

Tuesday, June 4, 2013

एक ग़ज़ल.................

तेरी यादों का यूँ सफर जागा
सो सका मैं न रातभर, जागा

तू नहीं पास था, मगर फिरभी
तेरी तस्वीर देखकर जागा

तेरी यादों के मोड़ पर अक्सर
मन अकेला ठहर-ठहर जागा

था यकीं खूब, तुम न आओगे
क्यूँ मैं सिक्का उछाल कर जागा

सोचता हूँ, कहाँ मिला मुझको
जिसकी चाहत में उम्रभर जागा

क्या जुनूं था कि उसके बारे में
रात भर खु़द से बात कर जागा

धड़ तो बेसुध पड़ा ‘अबोध’ रहा
साल-हा-साल किंतु सर जागा
............ मनोज अबोध

Monday, May 27, 2013

एक ग़ज़ल...............

अंगारों के बीच पला मैं 
अपनी लौ में आप जला मैं

वो कमियाँ तो हैं मुझमें भी
किसको देता दोष भला मैं

हर दिन झेली अग्नि परीक्षा
किस किस मुश्किल से निकला मैं

जो ख़ुद अपने साथ नहीं थे
उनके भी तो संग चला मैं

वक्त के साथ बँधा था मैं भी
धूप ढली तो साथ ढला मैं
       ----- मनोज अबोध

Monday, May 13, 2013

एक ग़ज़ल-----------------------------

क्या बताऊँ कि मेरे साथ वो क्या क्या चाहे
वो न तितली न तो जुगनू न ही तारा चाहे

अक्स बनके कभी अहसास में बसना चाहे
फूल बनके कभी कदमों में बिखरना चाहे

जानता वो भी है अब थक गए बाजू मेरे
अपने पंखों पे मुझे लेके वो उड़ना चाहे

अलविदा कह चुका है अपने सभी ख्वाबों को
जो मेरी आँख में है बस, वही सपना चाहे

मेरे कदमों में सिमटने लगी रफ्तार मेरी
और वो है कि मेरे साथ ही चलना चाहे

मोम की नाव में विश्वास का चप्पू लेकर
आग के दरिया से वो पार उतरना चाहे
                -------- मनोज अबोध

Tuesday, May 7, 2013

आज की ग़ज़ल------

कैसे कैसे मंज़र हैं
घर वाले भी बेघर हैं

जिनको भीतर होना था
ज्यादातर सब बाहर हैं

हो लेते हैं सोच के खुश
हम कितनो से बेहतर हैं

दुख में जोर से हँसता हूँ
अपने अपने तेवर हैं

जिनको गुज़रे युग बीते
वे सब मेरे भीतर हैं 

दुनिया में है रक्खा क्या
कुछ मोती कुछ पत्थर हैं
    -------- मनोज अबोध

Sunday, April 28, 2013

एक ग़ज़ल

यूँ तो लोग हजार मिले
तुम जैसे दो-चार मिले

अक्स तो अपना छोड़ा ही
जिससे हम इकबार मिले

उसको क्या दरकार भला
जिसको माँ का प्यार मिले

चाहत,  नफरत,  हमदर्दी 
कुछ तो आख़िरकार मिले

प्रेमकथा दो शब्दों की ?
कुछ इसको विस्तार मिले

चाह बहुत थी मिलने की
मिलके लगा बेकार मिले
 --------  मनोज अबोध

Monday, April 22, 2013

आज की ग़ज़ल--------------------------

रास्ता पग पग मिला काँटो भरा करता भी क्या
मुझको तो हर हाल में चलना ही था करता भी क्या

मुझको कब  मालूम था सच बोलना अपराध है
माननी मुझको पड़ी अपनी ख़ता करता भी क्या

मैं न तो घर का ही रह पाया न पूरा घाट का
मेरी गलती की मिली मुझको सज़ा करता भी क्या

नींद का आँखों से रिश्ता निभ न पाया उम्रभर
भाग्य में था रतजगा ही रतजगा करता भी क्या

उसके हाथों कत्ल होने के सिवा चारा न था     
ये गलत था तो जरा तू ही बता, करता भी क्या

साँस लेना भी वहाँ दुश्वार था मेरे लिए
दूर तक थी सिर्फ ज़हरीली हवा, करता भी क्या
----------------- मनोज अबोध--------------

Sunday, April 21, 2013

आज की ग़ज़ल-----------------

वही सुंदर-सा सोफा, वो ही दीवारें, वो घर तेरा
मैं सोया हूँ मगर सपना रहा है रात-भर तेरा

मेरी आँखों से आँसू छीन लेना ठीक है, लेकिन
कहीं का भी नहीं छोड़ेगा तुझको ये हुनर तेरा
                 
उसी को चोट दे बैठा जिसे अपना कहा तूने
उठेगा अब किसी के सामने कैसे ये सर तेरा

नज़र मंज़िल पे औ’ रफ्तार पे काबू भी रखना है
न बन जाए सुहाना ये सफर, अंतिम सफर तेरा

किसी मजलूम पर हो जुल्म, तू खामोश रह जाए
तुझे फिर चैन से  जीने  नहीं  देगा  ये डर तेरा

जमाना हो गया तूने छुआ था मुझको अधरों से
अभी तक है मेरे अहसास में बाकी असर तेरा

Friday, April 19, 2013

आज की ग़ज़ल----------------------------

नाव तूफान से यूँ पार भी हो सकती है
और कोशिश तेरी बेकार भी हो सकती है

फूल ही फूल हों, मुमकिन है भला कैसे ये?
 वक्त के हाथ में तलवार भी हो सकती है

बोलकर ही नहीं हमला किया जाता हरदम
तेरी चुप्पी तेरा हथियार भी हो सकती है

यूँ न मायूस हो तू, दिल को जरा ढाढस दे
ये तेरी प्रार्थना स्वीकार भी हो सकती है

मुतमइन इतना भी होना न कभी रस्ते में 
सामने इक नई दीवार भी हो सकती है

आपको कोई भी अच्छा नज़र नहीं आता  
ये नज़र आपकी बीमार भी हो सकती है

Tuesday, April 16, 2013

आज की ग़ज़ल---------------------------

भीड़ में खो गए आप भी
अजनबी हो गए आप भी

जी न पाएँगे, तय बात है
छोड़कर जो गए आप भी

जागने की सुनाकर सज़ा
चैन से सो गए आप भी

क्या कहा, प्यार है आपको
फिरतो समझो गए आप भी

फोन करना, न मिलना कभी
ऐसे क्यों हो गए आप भी

फूल आया न कोई भी फल
बीज क्या बो गए आप भी

Monday, April 15, 2013

आज की ग़ज़ल--------------------------

ज्या्दा थे क्या ग़म बाबा
आँख हुई जो नम बाबा ।

अब की उससे बिछड़े तो
दर्द हुआ कुछ कम बाबा।

जनमों के रिश्तों की कब
आँच रही क़ायम बाबा ।

अब तो मिलते हैं अक्सर
फूलों में भी बम बाबा ।

वक्‍़त पड़ा जब यारों से
टूट गए कुछ भ्रम बाबा।

मुश्किल है बचना अब तो
अपना दीन-धरम बाबा।

टूटे, पर कब बिखरे हम
झेले लाख सितम बाबा।

मौत डराती क्या हमको
जि़न्दा थे कब हम बाबा।

Thursday, April 11, 2013

भारतीय नववर्ष- नवसंवत्‍सर 2070 की शुभकामनाएं

जीवन में सफलता का  संघर्ष  सकल  शुभ हो ।
सद्कर्म,साहित्‍य,सृजन,उत्‍कर्ष सकल शुभ हो ।
सुख,समृद्धि,यश,वैभव पग चूमें सदा प्रियवर...
नूतन  स्‍पर्श-भरा   नव वर्ष  सकल  शुभ  हो ।।

Thursday, April 4, 2013

एक दोहा

कुछ उपजाऊ जोत तो, ली ठाकुर ने छीन ।
कोट-कचहरी चढ़ गई, बाकी बची जमीन ।।

Sunday, March 31, 2013

एक दोहा

जिनको बेमानी लगे, उसकी-मेरी प्रीत ।  
ऐसे लोगों के लिए, कैसे लिक्खूँ गीत ।।

Friday, March 29, 2013

एक कुण्‍डली

जीवन में खिलते रहें सुन्‍दर सुन्‍दर फूल ।
उन्‍नति पथ से दूर हों कंटक और बबूल ।
कंटक और बबूल, रास्‍ते सुगम बनें सब
आ न सके जीवन में संकट कोइ नया अब
आशाओं के पुष्‍प पल्‍लवित हों आंगन में
खुलें नए सोपान सफलता के जीवन में ।।


Wednesday, March 27, 2013

HAPPY HOLI

जीवन में हर पले सजे, रंग अबीर गुलाल ।
खुशियों की बौछार हो, हर दिन पूरे साल ।
हर दिन पूरे साल, रहे अव्‍वल पिचकारी ..
स्वदस्थ  रहे परिवार, न  हो  कोई  बीमारी ।
यही दुआ है आज..., उदासी रहे न मन में
हर पग हो विस्तार, सफलता का जीवन में ।।

Wednesday, March 20, 2013

एक दोहा

बिना किसी भय लुट रही, अबलाओं की लाज ।    
धन्य धन्य है आपका, यह  भयमुक्त समाज ।।

Tuesday, March 19, 2013

एक दोहा

सपने तो सपने रहे, सपनो का क्या दोष ।
अपने भी सपने हुए, बस इतना अफसोस ।।

Thursday, March 14, 2013

एक दोहा....

अधरों से जब दूर हों, कैसे आए चैन ।   
मदिरा के प्याले भरे, मीत तुम्हारे नैन ।।

Saturday, March 9, 2013

एक मुक्‍तक

भूल जाएंगे..लग रहा हैं हमे  ।।
दिल दुखाएंगे लग रहा है हमे ।।
और कब तक हम इंतजार करें
वो न आएंगे लग रहा है हमें ।।

एक मुक्‍तक

आपके आस पास रहना  है ।
और हमको उदास रहना है  ।
तुम न देखोगे इक नज़र हमको
लेके आंखों में प्‍यास रहना है ।।

Friday, March 8, 2013

एक दोहा

मादक नयनों से तेरे, चख ली थी इक बार ।  
उम्र हुई पर आज तक, उतरा नहीं खुमार ।।

Saturday, March 2, 2013

एक दोहा

पोथी  पर  पोथी  पढी, रोज  गए  इस्‍कूल ।
प्रेम पहाड़ा जब पढा, गए सभी कुछ भूल ।।

Thursday, February 28, 2013

एक दोहा

जब-जब पहले प्यार की, खोली गई किताब ।
पृष्ठों  में  हँसते  मिले, सूखे  हुए  गुलाब  ।।

Wednesday, February 27, 2013

एक दोहा...

संबंधों की डोर को, इतना भी मत खींच ।
हो छत्तिस  का  आँकड़ा,  तेरे मेरे  बीच ।।
                        

Monday, February 25, 2013

एक दोहा



एक टपरिया फूस की, कुछ मीठे अहसास ।
इतनी दौलत और है, अभी हमारे पास ।।