मन मेरे को बावरे , करतें हैं बेचैन !
मदिरा के प्याले भरे मीत तुम्हारे नैन !
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तेरे नैनों की तरह , मिली न कहीं शराब !
हमने इसी तलाश में जीवन किया खराब !
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मादक नयनो से तेरे चख ली थी एक बार
उम्र हुई पर आज तक उतरा नहीं खुमार !
4 comments:
आँखें अगर ज़बान नहीँ तो बेज़ुबान भी नहीं।
कैसे हैं भाई कहीँ शिमला से आकर चुपचाप तो लौट नहीँ गए?
अरे वाह.. मनोज जी, आप भी विद्यमान हैं... क्या बात है भई....... अब तो मिलना होता रहेगा.. नयी गतिविधियों से अवगत कराएं..
or haan DOHE achhe hain..
भाई अब तो फरवरी जाने वाला भी है।
"मैखाना बेनूर है, मैकश हैं लाचार ,
आंखों की मस्ती बिना, मादकता बेकार "
हुज़ूर ! अच्छी अच्छी गजलें ,
इतने मनमोहक दोहे ,
और रोचक यात्रा वृत्तांत ......
आप अच्छे अदब-नवाज़ भी हैं ,
अदब शनास भी ....
मुझे भी अपना मुरीद ही मानिए जनाब !!
---मुफलिस---
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