हमें नसीब तेरे इश्क के सिवा क्या है
ये और बात, हमें इश्क में मिला क्या है
तुम्हारी उम्र लगे मुझको, ये कहा न करो
जो ये दुआ है, बता और बद्दुआ क्या है
तेरी तलाश, तेरी फिक्र, आरज़ू तेरी
इसे न प्यार कहूं तो तुही बता, क्या है
वो पेड़ सूख गया कैसे जो हरा था कल
बताए कौन भला अब कि माज़रा क्या है
करेगा आकलन कैसे, तुम्हे नहीं मालूम
नज़र में उसकी बुरा क्या है या भला क्या है
तेरे करीब रहूं पर तुझे न देख सकूं
यही इनाम अगर है तो फिर सज़ा क्या है
चला गया जो कहीं दूर फिर मिलेगा कब
'अबोध' रोक उसे बढ़के, सोचता क्या है
3 comments:
मनोज जी बहुत सुन्दर भावों ko समेटा है आपने .आभार
तुम्हारी उम्र लगे मुझको, ये कहा न करो
जो ये दुआ है, बता और बद्दुआ क्या है
बहुत ख़ूब!
बहुत खुब........
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