तुम
मेरी रूह में समाया
एक
मधुर अहसास हो...
इसीलिए तो
दूर रहकर भी
इतनी पास हो.....
कि/ तुम्हारे सांसों की खुश्बू
रच-बस गई है
मेरी धड़कनों में...
कि/ तुम्हारे नयनों की अल्पना
अंकित हो गई है
हृदय के पृष्ठ पर...
तुम बिछोह की धुंध में
मिलन का शुभ कयास हो
इसीलिए तो
दूर होकर भी
इतनी पास हो...
तुम..
स्मृति शिखरों पर
मचलती
शुभ्र ज्योतित
उजास हो...
इसीलिए तो
दूर होकर भी
इतनी पास हो...
कि/ जल तरंग छेड़ती
तुम्हारी निर्मल हँसी
पुलकित कर जाती है
मेरे रोम-रोम को..
कि/ समर्पण का
मधुमय पराग लिए
तुम्हारे तप्त अधर
जगा जाते हैं
मेरे
अंग प्रत्यंग को...
तुम
देह की पवित्र अभिलाषा
औ’ आत्मा की प्यास हो..
इसीलिए तो
दूर रहकर भी
इतनी पास हो...
दूर रहकर भी
इतनी पास हो.......।
00000
मनोज अबोध
27-12-99
1 comment:
मनोज अबोध जी
नमस्कार !
इतनी प्यारी प्रेम कविता ! … और अब तक किसी की प्रतिक्रिया नहीं ?
तुम्हारे नयनों की अल्पना
अंकित हो गई है
हृदय के पृष्ठ पर…
बहुत सुंदर !
जल तरंग छेड़ती
तुम्हारी निर्मल हंसी
पुलकित कर जाती है
मेरे रोम-रोम को …
वाह वाह !
बहुत अच्छा लिखा है आपने , बधाई !!
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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