इक अच्छा इंसान बनूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
जीवन में आगे निकलूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
पुरखों की पावन खुश्बू से
नित जो महका करता था
उस आंगन के बीच रहूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
हर सुन्दर लड़की से मिलकर
सपने बुनने लगती थी
उसके मन का ब्याह करूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
ख़त लिखने का वक्त नहीं जो
इतना तो कर सकता हूं
पलभर उसको फोन करूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
बाबू जी गुज़रें हैं जबसे
घर खाली सा लगता है
कुछ दिन उसके साथ रहूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
साल हुआ तुम सब को देखे
दीवाली पर आ जाऊं
घर आंगन में दीप धरूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
किस चिंता में घुलकर बेटा
हंसना भूल गया है तू
अपने दिल की बात कहूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
एक अकेली बूढ़ी घर में
सर टकराती रहती है
कुछदिन अपने साथ रखूं मैं
मां ने कितना चाहा था ।
सच ,
मां ने कितना चाहा था ।।।
1 comment:
माँ तो हमेशा यही चाह्ती है। कि उसके बच्चे सुखी रहे।
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