कहावत है, जुबां पर सत्य की ताला नहीं देखा
मगर हर शख्स तो सच बोलने वाला नहीं देखा
किसी की राह में हंसते हुए हस्ती मिटा देना
न देखा, टूटकर यूं चाहने वाला नहीं देखा
अगर जागी तलब तो आंख से पी ली,मगर हमने
कभी सागर नहीं ढूंढा कभी प्याला नहीं देखा
मुहब्बत सिर्फ इक अहसास से बढकर बहुत कुछ है
वफ़ा की आंख में हमने कभी जाला नहीं देखा
पहुंचना था जिन्हे मंजिल पे ,वो कैसे भी जा पहुंचे
डगर की मुश्किले या पांव का छाला नहीं देखा
तुम्हारा मानना होगा कि सच का बोलबाला है
मगर हमने यहां झूठे का मुंह काला नहीं देखा
No comments:
Post a Comment