कि हम वो हैं जो हर
तूफान का रूख मोड़ देते हैं
उन्हे अपना बनाते हैं
जिन्हें सब छोड़ देते हैं
हमेशा जीत हो मैदान में
मुमकिन नहीं लेकिन
समय हो साथ तो
शीशे भी पत्थर तोड़ देते हैं ।
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वफ़ा की दोस्ती की
हर कसम को तोड़ देते हैं
पकड़कर हाथ जाने लोग
कैसे छोड़ देते हैं
जिसे कहते हैं अपना भाई
सीने से लगाते हैं
उसी भाई से अखबारों में
रिश्ता तोड़ देते हैं ।।
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सभी के साथ कुछ रिश्ता
निभाना भी जरूरी है
हमे है फिक्र उसकी
ये दिखाना भी जरूरी है
न मैं अभिमान करता हूं
मगर सम्मान की खातिर
मैं क्या हूं कौन हूं, इतना
बताना भी जरूरी है ।।।।
4 comments:
बेहतरीन पोस्ट .बधाई !
bahu hi badhiya
pranam
अच्छा लगा पढना।
हमे है िफक्र उसकी
ये दिखाना भी जरूरी है
न मैं अभिमान करता हूं
मगर सम्मान की खातिर
मैं क्या हूं कौन हूं, इतना
बताना भी जरूरी है ।।
बहुत ही सुन्दर शब्द एंव भाव ।
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