शीत न हों ये हाथ अब
शीत न हों संबंध
शीत युद्ध से मुक्त हों
मित्रों के अनुबन्ध ।
मन्द न पड़ जाए कहीं
संबंधों की आंच
सुख की दुख की चिटिठयां
खुले हृदय से बांच ।
मौसम की सौगात हैं
पाला शीत कुहास
पर उसको ये व्यर्थ हैं
जिसको तेरी आस ।
2 comments:
aj tumhare jagne se pehle gugmorning ker rahi hun.patidev priyatam!mausam ka pehla kuhas hi kiyun, tumne tou ab tak har mausam ki meethi joostju ki hai,jo chahtey ho hamse ishwar, usko puri kare. aameen.
कमाल की रचना
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