क्या बताऊँ कि मेरे साथ वो क्या-क्या चाहे ..... वो न तितली न वो जुगनू न ही तारा चाहे........
Wednesday, May 13, 2009
कैसे उसको छोड़ूँ कैसे पाऊँ मैं
इस उलझन का तोड़ कहाँ से लाऊँ मैं
आँखें क्यों भीगी-भीगी-सी रहती हैं
कोई गर पूछे तो क्या बतलाऊँ मैं
मेरे भीतर इक नन्हा-सा बच्चा है
ज़िद उसकी कैसे पूरी कर पाऊँ मैं
सीपी शंख नदी तितली औ‘ फूलों के
कितने सपने उसके साथ सजाऊँ मैं
एक तिलस्मी जंगल उसकी आँखों में
राह न पाऊँ और वहीं खो जाऊँ मैं
मेरे पाँव बँधे हैं भूलों के पत्थर
उसके सँग चाहूँ पर कब चल पाऊँ मैं
मेरा पागलपन तो कहता है मुझसे
छोड़ूँ सबको, बस, उसका हो जाऊँ मैं
कुछ वो पागल है कुछ दिवाना भी
उसको जाना मगर न जाना भी
यूँ तो हर शै में सिर्फ़ वो ही वो
कितना मु्श्क़िल है उसको पाना भी
उसके अहसास को जीना हरपल
यानि, अपने को भूल जाना भी
उससे मिलना, उसी का हो जाना
वो ही मंज़िल, वही ठिकाना भी
भूल की थी, सज़ा मिली कैसी ?
झेलना, उम्र भर निभाना भी
आज पलकों पे होंठ रख ही दो
आज मौसम है कुछ सुहाना भी
एक टूटी छत लिए बरसात का स्वागत करूँ
एक टूटी छत लिए बरसात का स्वागत करूँ,
अब भी क्या बिगड़े हुए हालात का स्वागत करूँ ।
अपना घर जलने के ग़म को भूल भी जाऊँ,मगर
बस्ती-बस्ती किस तरह आपात का स्वागत करूँ ।
मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं,
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ ।
बाप हूँ, ये सच है, लेकिन इसका मतलब नहीं,
रह के चुप, बच्चों के हर उत्पात का स्वागत करूँ ।
हाथ मेरा, तेरे हाथों में जो रह पाए यूँ ही ,
मुस्कुराकर मैं सभी हालात का स्वागत करूँ ।
जब खुलें नींदें मेरी तेरे नयन की भोर हो,
तेरी ज़ुल्फ़ों की घनेरी रात का स्वागत करूँ ।
अपने आप से लड़ता मैं
अपने आप से लड़ता मैं
यानी, ख़ुद पर पहरा मैं
वो बोला-नादानी थी
फिर उसको क्या कहता मैं
जाने कैसा जज़्बा था
माँ देखी तो मचला मैं
साथ उगा था सूरज के
साँझ ढली तो लौटा मैं
वो भी कुछ अनजाना-सा
कुछ था बदला-बदला मैं
झूठ का खोल उतारा तो
निकला सीधा सच्चा मैं
क्या होगा अंजाम, न पूछ
क्या होगा अंजाम, न पूछ
सुबह से मेरी शाम, न पूछ
आगंतुक का स्वागत कर
क्यों आया है काम न पूछ
मेरे भीतर झाँक के देख
मुझसे मेरा नाम न पूछ
पहुँच से तेरी बाहर हैं
इन चीज़ों के दाम न पूछ
रीझ रहा है शोहरत पर
कितना हूँ बदनाम न पूछ
मिलके चलना बहुत ज़रूरी है
मिलके चलना बहुत ज़रूरी है
अब सँभलना बहुत ज़रूरी है
गुत्थियाँ हो गईं जटिल कितनी
हल निकलना बहुत ज़रूरी है
आग बरसा रहा है सूरज अब
दिन का ढलना बहुत ज़रूरी है
जड़ न हो जाएँ चाहतें अपनी
हिम पिघलना बहुत ज़रूरी है
हम निशाने पे आ गए उसके
रुख़ बदलना बहुत ज़रूरी है
है अँधेरा तो प्यार का दीपक
मन में जलना बहुत ज़रूरी है
उसपे मर मिटने का स्वभाव लिए बैठा हूँ
उम्र भर के लिए भटकाव लिए बैठा हूँ
याद है, मुझको कहा था कभी अपनी धड़कन
आपकी सोच का दुहराव लिए बैठा हूँ
तुम मिले थे जहाँ इक बार मसीहा की तरह
फिर उसी मोड़ पे ठहराव लिए बैठा हूँ
लाख तूफ़ान हों, जाना तो है उस पार मुझे
लाख टूटी हुई इक नाव लिए बैठा हूँ
आपके फूल से हाथों से मिला था जो कभी
आज तक दिल पे वही घाव लिए बैठा हूँ
Sunday, January 18, 2009
Sunday, January 4, 2009
Saturday, January 3, 2009
तुम्हे कसम है ......
मै तारे तोड़ के लाऊंगा तुम्हारी खातिर ... ये कायनात सजाऊंगा तुम्हारी खातिर .....
मै तुमसे दूर हूँ ये वक्त की मजबूरी है.... वरना, दिल से हमारे बीच कहाँ दूरी है .....
जो बुझ सके मेरे बिन ऐसी प्यास मत होना !! तुम्हे कसम है मेरी जाँ.... उदास मत होना !!!!!!
मै जानता हूँ मेरी उम्र मेरे साथ नहीं ... ब-खुदा उम्र के बढ़ने में मेरा हाथ नहीं
मै चाहता हूँ हमेशा तुम्हारे साथ रहूँ ... हरेक सुख, हरेक दुःख तुम्हारे साथ सहूँ .....
जो डगमगाने लगे ...ऐसी प्यास मत होना !! तुम्हे कसम है मेरी जाँ.... उदास मत होना !!!!!!
तुम्हारे चेहरे पे मुस्कान अच्छी लगती है ...प्यार की छोटी सी पहचान अच्छी लगती है ......
मुझे तो सबसे मेरी जान ! अच्छी लगती है ....
चहकती भीड़ में एकांतवास मत होना !! तुम्हे कसम है मेरी जाँ.... उदास मत होना !!!!!!
सुहानी शाम की उन मदभरी बातों की कसम ... जो तुमने चूम लिए थे उन्हीं हाथों की कसम .....
जो हमने साथ गुजारीं उन्हीं रातों की कसम .....
निराश लोगों के भी आस-पास मत होना !! तुम्हे कसम है मेरी जाँ.... उदास मत होना !!!!!!
जो मैंने तुमको लिखे ख़त , वो दुबारा पढ़ना .... खुली आँखों में नए ख्वाब प्यार के गढ़ना .....
वफ़ा के मोड़ की कुछ और ..सीढियां चढ़ना .....
अधूरी चाहतों का कारावास ..मत होना !! तुम्हे कसम है मेरी जाँ.... उदास मत होना !!!!!!
भाग्य का देवता भी हमसे रूठ जाए तो क्या ! तुम्हारे सब्र का हर बाँध टूट जाए तो क्या !
किसी भी हाल में होशो-हवास मत खोना !! तुम्हे कसम है मेरी जाँ.... उदास मत होना !!!!!!
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कुछ दोहे
पूरण हो हर कामना , शुभ शुभ हो नव- वर्ष ! !
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आँखों में जब से घुला , यादों का मकरंद !
कोहरे में उड़ती मिले, बस- तेरी ही गंध !!
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पाला , शीत, कुहास का कोई नही प्रभाव !
बूढी आँखों को खले, बेटा , तिरा अभाव !!
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उन पर भारी बीतती शरद ऋतू की रात !
जिनके सर पर छत नही , हैं अध् -नंगे गात !
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