एक टूटी छत लिए बरसात का स्वागत करूँ,
अब भी क्या बिगड़े हुए हालात का स्वागत करूँ ।
अपना घर जलने के ग़म को भूल भी जाऊँ,मगर
बस्ती-बस्ती किस तरह आपात का स्वागत करूँ ।
मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं,
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ ।
बाप हूँ, ये सच है, लेकिन इसका मतलब नहीं,
रह के चुप, बच्चों के हर उत्पात का स्वागत करूँ ।
हाथ मेरा, तेरे हाथों में जो रह पाए यूँ ही ,
मुस्कुराकर मैं सभी हालात का स्वागत करूँ ।
जब खुलें नींदें मेरी तेरे नयन की भोर हो,
तेरी ज़ुल्फ़ों की घनेरी रात का स्वागत करूँ ।
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