कैसे उसको छोड़ूँ कैसे पाऊँ मैं
इस उलझन का तोड़ कहाँ से लाऊँ मैं
आँखें क्यों भीगी-भीगी-सी रहती हैं
कोई गर पूछे तो क्या बतलाऊँ मैं
मेरे भीतर इक नन्हा-सा बच्चा है
ज़िद उसकी कैसे पूरी कर पाऊँ मैं
सीपी शंख नदी तितली औ‘ फूलों के
कितने सपने उसके साथ सजाऊँ मैं
एक तिलस्मी जंगल उसकी आँखों में
राह न पाऊँ और वहीं खो जाऊँ मैं
मेरे पाँव बँधे हैं भूलों के पत्थर
उसके सँग चाहूँ पर कब चल पाऊँ मैं
मेरा पागलपन तो कहता है मुझसे
छोड़ूँ सबको, बस, उसका हो जाऊँ मैं
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