क्या बताऊँ कि मेरे साथ वो क्या-क्या चाहे ..... वो न तितली न वो जुगनू न ही तारा चाहे........
अपने आप से लड़ता मैं
यानी, ख़ुद पर पहरा मैं
वो बोला-नादानी थी
फिर उसको क्या कहता मैं
जाने कैसा जज़्बा था
माँ देखी तो मचला मैं
साथ उगा था सूरज के
साँझ ढली तो लौटा मैं
वो भी कुछ अनजाना-सा
कुछ था बदला-बदला मैं
झूठ का खोल उतारा तो
निकला सीधा सच्चा मैं
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