मनोज अबोध
क्या बताऊँ कि मेरे साथ वो क्या-क्या चाहे ..... वो न तितली न वो जुगनू न ही तारा चाहे........
Saturday, October 14, 2017
एक दोहा और
एक दोहा और भी देख लें मान्यवर
तय था आओगे नहीं, फिर भी बारम्बार ।
हर आहत पर चौंक कर, देखा मैंने द्वार ।।
---मनोज अबोध
एक दोहा
एक दोहा यादों भरा....
मादक नयनों से तिरे, चख ली थी इकबार ।
उम्र हुई पर आज तक, उतरा नहीं ख़ुमार ।।
-----मनोज अबोध
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