Friday, March 17, 2017

न जाने कैसे

अच्छे से याद है मुझे
कमरे में घुसते ही
सटाक से कर लिया था दरवाज़ा बन्द
चढ़ा दी थी चिटकनी
लगा दी थी कुण्डी
कि/ चाह कर भी कोई
भीतर न आ सके ।
मगर न जाने कैसे...कब
मेरे साथ-साथ
बिस्तर तक चले आये
कई दुःख, कई चिन्ताएं
क्रोध के रेतीले झोंके
ईगो, पश्चाताप और यादें
उफ़...
एक मुलायम बिस्तर में
इतने कठोर सहवासी
वो भी इतने सारे...?
एकाएक आँखों में उग आई नागफ़नी
और/ करवटें बदलता रहा
मैं रातभर ..।।।।

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