Friday, March 25, 2011

बनने मत देना कभी, मन में कोई भीत ।

जब कोई शंका उठे, खुलकर कहना मीत ।।

2 comments:

विनोद पाराशर said...

अबोध जी.
दो पंक्तियों में ही मित्रता का मूल-मंत्र आपने बता दिया.जब भी शंका हो-उसपर खुले मन से चर्चा करके समाधान किया जाना चाहिए.

अविनाश वाचस्पति said...

दो पंक्तियों की रीत
बन सकता है पूरा गीत