तेरी यादों का यूँ सफर जागा
सो सका मैं न रातभर, जागा
तू नहीं पास था, मगर फिरभी
तेरी तस्वीर देखकर जागा
तेरी यादों के मोड़ पर अक्सर
मन अकेला ठहर-ठहर जागा
था यकीं खूब, तुम न आओगे
क्यूँ मैं सिक्का उछाल कर जागा
सोचता हूँ, कहाँ मिला मुझको
जिसकी चाहत में उम्रभर जागा
क्या जुनूं था कि उसके बारे में
रात भर खु़द से बात कर जागा
धड़ तो बेसुध पड़ा ‘अबोध’ रहा
साल-हा-साल किंतु सर जागा
............ मनोज अबोध
सो सका मैं न रातभर, जागा
तू नहीं पास था, मगर फिरभी
तेरी तस्वीर देखकर जागा
तेरी यादों के मोड़ पर अक्सर
मन अकेला ठहर-ठहर जागा
था यकीं खूब, तुम न आओगे
क्यूँ मैं सिक्का उछाल कर जागा
सोचता हूँ, कहाँ मिला मुझको
जिसकी चाहत में उम्रभर जागा
क्या जुनूं था कि उसके बारे में
रात भर खु़द से बात कर जागा
धड़ तो बेसुध पड़ा ‘अबोध’ रहा
साल-हा-साल किंतु सर जागा
............ मनोज अबोध
1 comment:
बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
मुझे आश्चर्य है कि इतनी बेहतरीन प्रस्तुति के बावजूद कोई कमेन्ट नहीं है....
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