एक टूटी छत लिए बरसात का स्वागत करूँ ।
अब भी क्या बिगड़े हुए हालात का स्वागत करूँ
अपना घर जलने के ग़म को भूल भी जाऊँ,मगर
बस्ती-बस्ती किस तरह आपात का स्वागत करूँ
मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ
बाप हूँ, ये सच है लेकिन, इसका ये मतलब नहीं
रह के चुप, बच्चों के हर उत्पात का स्वागत करूँ
हाथ मेरा, तेरे हाथों में जो रह पाए यूँ ही
मुस्कुराकर मैं सभी हालात का स्वागत करूँ
जब खुलें नींदें मेरी तेरे नयन की भोर हो
तेरी ज़ुल्फ़ों की घनेरी रात का स्वागत करूँ
0 मनोज अबोध
अब भी क्या बिगड़े हुए हालात का स्वागत करूँ
अपना घर जलने के ग़म को भूल भी जाऊँ,मगर
बस्ती-बस्ती किस तरह आपात का स्वागत करूँ
मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ
बाप हूँ, ये सच है लेकिन, इसका ये मतलब नहीं
रह के चुप, बच्चों के हर उत्पात का स्वागत करूँ
हाथ मेरा, तेरे हाथों में जो रह पाए यूँ ही
मुस्कुराकर मैं सभी हालात का स्वागत करूँ
जब खुलें नींदें मेरी तेरे नयन की भोर हो
तेरी ज़ुल्फ़ों की घनेरी रात का स्वागत करूँ
0 मनोज अबोध
2 comments:
behtareen... :)
उम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
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