बनाकर बेवजह मशहूर मुझको
न कर यूँ ख़ुद से इतना दूर मुझको
तुम्हारी चोट पहुँचाने की आदत
कहीं कर दे न चकनाचूर मुझको
सहे जाती है हर ग़म मुस्कुराकर
कभी करती नहीं मजबूर मुझको
सफ़र को बीच में ही छोड़ दूँ मैं
नहीं ये फैसला मंज़ूर मुझको
रिसे हैं उम्र-भर मेरी रगों से
मिले हर सिम्त वो नासूर मुझको
अभी टूटे न इन साँसों की डोरी
निभाने हैं कई दस्तूर मुझको
अलग ये बात है, मैं जी न पाया
मिली थी ज़िन्दगी भरपूर मुझको
---- मनोज अबोध
न कर यूँ ख़ुद से इतना दूर मुझको
तुम्हारी चोट पहुँचाने की आदत
कहीं कर दे न चकनाचूर मुझको
सहे जाती है हर ग़म मुस्कुराकर
कभी करती नहीं मजबूर मुझको
सफ़र को बीच में ही छोड़ दूँ मैं
नहीं ये फैसला मंज़ूर मुझको
रिसे हैं उम्र-भर मेरी रगों से
मिले हर सिम्त वो नासूर मुझको
अभी टूटे न इन साँसों की डोरी
निभाने हैं कई दस्तूर मुझको
अलग ये बात है, मैं जी न पाया
मिली थी ज़िन्दगी भरपूर मुझको
---- मनोज अबोध
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