Tuesday, November 20, 2018

एक दोहा....


3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-11-2018) को "ईमान बदलते देखे हैं" (चर्चा अंक-3162) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Unknown said...

दो पल तुझको देखकर मिट जाती है प्यास ,
अगले ही पल मन करे फिर मिलने की आस।
आशा तृष्णा न मरी मर मर गए शरीर
बिन देखे भी रहा न जाए ,
पर देखे से और रिझाये।
कहने लगे तो कहा न जाए ,
बिना कहे भी रहा न जाए।
बढ़िया भाव का दोहा -मनोज अबोध का ,बोध जगाता

vigyanpaksh.blogspot.com
vigyanspectrum05.blogspot.com
veeruji05.blogspot.com
veerujan.blogspot.com

Anita said...

सुंदर भाव