Wednesday, March 20, 2013

एक दोहा

बिना किसी भय लुट रही, अबलाओं की लाज ।    
धन्य धन्य है आपका, यह  भयमुक्त समाज ।।

2 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट 21 - 03- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें ।

Madan Mohan Saxena said...

बेह्तरीन .