सच का किसने साथ दिया है देखो तो
साया बनकर कौन खड़ा है देखो तो
पाँव नहीं थे उसके, केवल चिंतन था
फिर भी, मेरे साथ चला है देखो तो
पहुँच गए है दोनों यूँ तो मंजि़ल तक
किसने किसका साथ दिया है देखो तो
वो भी निकला जिस्म की चाहत वालों में
एक भरोसा टूट गया है देखो तो
लश्कर वालो, रफ्तारों पर ज़ब्त करो
इक दीवाना छूट गया है देखो तो
------------- मनोज अबोध
साया बनकर कौन खड़ा है देखो तो
पाँव नहीं थे उसके, केवल चिंतन था
फिर भी, मेरे साथ चला है देखो तो
पहुँच गए है दोनों यूँ तो मंजि़ल तक
किसने किसका साथ दिया है देखो तो
वो भी निकला जिस्म की चाहत वालों में
एक भरोसा टूट गया है देखो तो
लश्कर वालो, रफ्तारों पर ज़ब्त करो
इक दीवाना छूट गया है देखो तो
------------- मनोज अबोध
1 comment:
बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...
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