सकल श्रम आज निष्फल हो रहा है
ग़ज़ल के नाम पर छल हो रहा है
उधर वो विष उगलते जा रहे हैं
इधर मन है कि सन्दल हो रहा है
ज़रा-सी बात पर सर काट डाला
नगर अभिशप्त जंगल हो रहा है
लगाकर लाइनें कुछ फेसबुक पर
नया शायर मुकम्मल हो रहा है
कभी जो सोचकर दिल काँपता था
वही सब आज हर पल हो रहा है
करूँ कैसे नियन्त्रित इस हृदय को
तुम्हें देखा तो चंचल हो रहा है ।
वो जितनी देर करते जा रहे हैं
ये मन उतना ही बेकल हो रहा है
मुझे जेअन यू में दाख़िल कराओ
मेरा आदर्श अफ़ज़ल हो रहा है
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ग़ज़ल के नाम पर छल हो रहा है
उधर वो विष उगलते जा रहे हैं
इधर मन है कि सन्दल हो रहा है
ज़रा-सी बात पर सर काट डाला
नगर अभिशप्त जंगल हो रहा है
लगाकर लाइनें कुछ फेसबुक पर
नया शायर मुकम्मल हो रहा है
कभी जो सोचकर दिल काँपता था
वही सब आज हर पल हो रहा है
करूँ कैसे नियन्त्रित इस हृदय को
तुम्हें देखा तो चंचल हो रहा है ।
वो जितनी देर करते जा रहे हैं
ये मन उतना ही बेकल हो रहा है
मुझे जेअन यू में दाख़िल कराओ
मेरा आदर्श अफ़ज़ल हो रहा है
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:::मनोज अबोध
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