आजकल की ठिठुरन भरी सर्दियों में उन प्रेयसियों की व्यथा कहता, जिनके प्रियतम ऐसे मौसम में उनसे दूर हैं, एक पुराना दोहा याद आ रहा है---------
रातें ये ठिठुरन भरी, अस्थिय बजत मृदंग
तू भी कोसों दूर है.., अंग छिडी है जंग ।।।
रातें ये ठिठुरन भरी, अस्थिय बजत मृदंग
तू भी कोसों दूर है.., अंग छिडी है जंग ।।।
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