ज्योंहि मौसम में वासंती बयार बहने लगती है, सर्दी के बावजूद युवा मन में कुछ कुछ होने लगता है, इसी प्रसंग पर करीब दस बरस पहले लिखा, नायिका को केन्द्रित करता मेरा एक दोहा-
बैठ बसंती डाल पर, कोयल कुहके रोज ।
गोरी कब तक ढोएगी, इस यौवन का बोझ ।।
बैठ बसंती डाल पर, कोयल कुहके रोज ।
गोरी कब तक ढोएगी, इस यौवन का बोझ ।।
1 comment:
basant kee ahat par ...sundar
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