Monday, January 23, 2012

वसंत

ज्‍योंहि मौसम में वासंती बयार बहने लगती है, सर्दी के बावजूद युवा मन में कुछ कुछ होने लगता है, इसी प्रसंग पर करीब दस बरस पहले लिखा, नायिका को केन्द्रित करता मेरा एक दोहा-

               बैठ बसंती डाल पर, कोयल कुहके रोज ।
               गोरी कब तक ढोएगी, इस यौवन का बोझ ।।

1 comment:

Riya Sharma said...

basant kee ahat par ...sundar