आज मिले हो तुम...
आज मिले हो तुम
जैसे, बिसरे गीतों के छंद
जाग उठी प्राणों में फिर
बीते मौसम की गन्ध ।।
कितने अनदेखे सपने,
जब खड़े हुए थे द्वार....
कहां उठा पाई थीं पलकें
स्पर्शों का भार ...
पूर्ण समर्पण ही लगता, था
जीवन का सार....
जैसे, कोई मधुप हो जाए
मन-पंकज में बन्द ।।
मन के चिर-सूने पनघट पर
तुम ऐसे आये...
ज्यों युग के प्यासे पंथी को
सरिता मिल जाये..
श्वांसों में रजनीगंधा की
खुश्बू घुल जाये...
अब न बिछड़ना मीत, तुम्हे
उन यादों की सौगन्ध ।।
-- मनोज अबोध
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