अलग़-अलग़ होता है
सभी का पैमाना
जिनसे नापते हैं लोग
अपनी खुशियां !
कुछ हैं जो ख़ुश हो जाते हैं
छोटी-छोटी बातों में
उन्हें खुश रखने में
ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती
ऐसे लोगों के लिए
बहुत मायने रखती है छोटी-सी ख़ुशी भी !
साधारण सी बातों में ख़ुशी ढूंढ़ कर
खुश रहनेवाले इस दर्जे के लोगों के पास
इतनी खुशियां इकट्ठा हो जाती हैं कि
वे अपने आस-पास वालों को भी
गाहे-बगाहे बाँटते रहते हैं खुशियाँ !
अब मज़ा तो ये है कि
हर रोज़ हर पल
खुशियां बाँटने के बावजूद भी
कम नहीं होतीं इनकी खुशियाँ
बल्कि, इज़ाफ़ा ही होता रहता है कुछ-न-कुछ !
दूसरी तरफ़, ऐसे भी लोग हैं
जिनकी ख़ुशी का ग्राफ होता है
बहुत कॉम्प्लिकेटेड !
उन्हें ख़ुद मालूम नहीं होता कई बार
कि/ वे कैसे खुश हो सकते हैं ?
ऐसे लोगों को खुश करना
बहुदा होता है इतना मुश्किल
जैसे- पानी पर पानी लिखना !
ऐसा नहीं कि ये लोग
खुश होना नहीं चाहते
बस, इनकी ख़ुशियों का साइज़ जरा बड़ा होता है
अपनी बड़ी खुशियों को दिखाने के लिए
अक्सर रचते रहते हैं ये
बड़े-बड़े प्रपंच
बाकायदा बुलाते हैं तमाम नीयर-डीयर्स को
गवाही के लिए !
ख़र्च करते हैं बड़ी-बड़ी रक़म
दिखाने का सफ़ल-असफ़ल प्रयास करते हैं
बाक़ी को
कि/ तुम्हारी खुशियाँ
कितनी बोदी हैं, कितनी मलेच्छ
इनकी विशालकाय ख़ुशियों के सामने !!!
लेकिन, अगले ही पल
छूमंतर हो जाती हैं इनकी खुशियाँ
आयोजन का हिसाब-किताब करते वक़्त !
दुःखी हो जाते हैं
पर, मुस्कुराते हैं झूठमूठ सबके सामने !
वहीं, मुझ जैसे बहुत सारे लोग
धीरे से ढूंढ़ लेते हैं अपने स्तर की छोटी खुशियाँ
इन्ही बड़ी ख़ुशियों के शामियाने में
और चुपचाप खड़े हो जाते हैं एक कोने में
भीतर ही भीतर मुस्कुराते हुए
बगल में दबाये अपने हिस्से की ख़ुशी।
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सभी का पैमाना
जिनसे नापते हैं लोग
अपनी खुशियां !
कुछ हैं जो ख़ुश हो जाते हैं
छोटी-छोटी बातों में
उन्हें खुश रखने में
ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती
ऐसे लोगों के लिए
बहुत मायने रखती है छोटी-सी ख़ुशी भी !
साधारण सी बातों में ख़ुशी ढूंढ़ कर
खुश रहनेवाले इस दर्जे के लोगों के पास
इतनी खुशियां इकट्ठा हो जाती हैं कि
वे अपने आस-पास वालों को भी
गाहे-बगाहे बाँटते रहते हैं खुशियाँ !
अब मज़ा तो ये है कि
हर रोज़ हर पल
खुशियां बाँटने के बावजूद भी
कम नहीं होतीं इनकी खुशियाँ
बल्कि, इज़ाफ़ा ही होता रहता है कुछ-न-कुछ !
दूसरी तरफ़, ऐसे भी लोग हैं
जिनकी ख़ुशी का ग्राफ होता है
बहुत कॉम्प्लिकेटेड !
उन्हें ख़ुद मालूम नहीं होता कई बार
कि/ वे कैसे खुश हो सकते हैं ?
ऐसे लोगों को खुश करना
बहुदा होता है इतना मुश्किल
जैसे- पानी पर पानी लिखना !
ऐसा नहीं कि ये लोग
खुश होना नहीं चाहते
बस, इनकी ख़ुशियों का साइज़ जरा बड़ा होता है
अपनी बड़ी खुशियों को दिखाने के लिए
अक्सर रचते रहते हैं ये
बड़े-बड़े प्रपंच
बाकायदा बुलाते हैं तमाम नीयर-डीयर्स को
गवाही के लिए !
ख़र्च करते हैं बड़ी-बड़ी रक़म
दिखाने का सफ़ल-असफ़ल प्रयास करते हैं
बाक़ी को
कि/ तुम्हारी खुशियाँ
कितनी बोदी हैं, कितनी मलेच्छ
इनकी विशालकाय ख़ुशियों के सामने !!!
लेकिन, अगले ही पल
छूमंतर हो जाती हैं इनकी खुशियाँ
आयोजन का हिसाब-किताब करते वक़्त !
दुःखी हो जाते हैं
पर, मुस्कुराते हैं झूठमूठ सबके सामने !
वहीं, मुझ जैसे बहुत सारे लोग
धीरे से ढूंढ़ लेते हैं अपने स्तर की छोटी खुशियाँ
इन्ही बड़ी ख़ुशियों के शामियाने में
और चुपचाप खड़े हो जाते हैं एक कोने में
भीतर ही भीतर मुस्कुराते हुए
बगल में दबाये अपने हिस्से की ख़ुशी।
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2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-01-2017) को "होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
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