इन कडाके की सर्दियों में बडी शिद्दत से अम्मा की याद आ जाती है कि किस तरह रजाई में दुबका कर रखती थीं और सब खाना पीना वहीं बिस्तर पर देती थी कि कहीं सर्दी न लग जाए । हाथ से बुन कर स्वीटर, दस्ताने ,टोपी, मौजे, सभी कुछ तो कितना अच्छा बुनकर पहनाती थी । फिर याद आता है कि क्या उनके बुढापे में, उनकी कमजोरी में मैं भी उतना ही उनका खयाल रख पाया ...और तो और, उनके साथ भी न रह पाया । आज भी यह दर्द सालता है । एक दोहा देखें----
पाला शीत कुहास का, कोई नहीं प्रभाव
बूढी आंखों को खले.., बेटा तेरा अभाव ।।
पाला शीत कुहास का, कोई नहीं प्रभाव
बूढी आंखों को खले.., बेटा तेरा अभाव ।।
2 comments:
गहरे अहसासों की अभिव्यक्ति ...माँ से जुडी यादे आज भी हैं ...आभार
सुंदर दोहा
Post a Comment