ज्या्दा थे क्या ग़म बाबा
आँख हुई जो नम बाबा ।
अब की उससे बिछड़े तो
दर्द हुआ कुछ कम बाबा।
जनमों के रिश्तों की कब
आँच रही क़ायम बाबा ।
अब तो मिलते हैं अक्सर
फूलों में भी बम बाबा ।
वक़्त पड़ा जब यारों से
टूट गए कुछ भ्रम बाबा।
मुश्किल है बचना अब तो
अपना दीन-धरम बाबा।
टूटे, पर कब बिखरे हम
झेले लाख सितम बाबा।
मौत डराती क्या हमको
जि़न्दा थे कब हम बाबा।
आँख हुई जो नम बाबा ।
अब की उससे बिछड़े तो
दर्द हुआ कुछ कम बाबा।
जनमों के रिश्तों की कब
आँच रही क़ायम बाबा ।
अब तो मिलते हैं अक्सर
फूलों में भी बम बाबा ।
वक़्त पड़ा जब यारों से
टूट गए कुछ भ्रम बाबा।
मुश्किल है बचना अब तो
अपना दीन-धरम बाबा।
टूटे, पर कब बिखरे हम
झेले लाख सितम बाबा।
मौत डराती क्या हमको
जि़न्दा थे कब हम बाबा।
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