रास्ता पग पग मिला काँटो भरा करता भी क्या
मुझको तो हर हाल में चलना ही था करता भी क्या
मुझको कब मालूम था सच बोलना अपराध है
माननी मुझको पड़ी अपनी ख़ता करता भी क्या
मैं न तो घर का ही रह पाया न पूरा घाट का
मेरी गलती की मिली मुझको सज़ा करता भी क्या
नींद का आँखों से रिश्ता निभ न पाया उम्रभर
भाग्य में था रतजगा ही रतजगा करता भी क्या
उसके हाथों कत्ल होने के सिवा चारा न था
ये गलत था तो जरा तू ही बता, करता भी क्या
साँस लेना भी वहाँ दुश्वार था मेरे लिए
दूर तक थी सिर्फ ज़हरीली हवा, करता भी क्या
----------------- मनोज अबोध--------------
मुझको तो हर हाल में चलना ही था करता भी क्या
मुझको कब मालूम था सच बोलना अपराध है
माननी मुझको पड़ी अपनी ख़ता करता भी क्या
मैं न तो घर का ही रह पाया न पूरा घाट का
मेरी गलती की मिली मुझको सज़ा करता भी क्या
नींद का आँखों से रिश्ता निभ न पाया उम्रभर
भाग्य में था रतजगा ही रतजगा करता भी क्या
उसके हाथों कत्ल होने के सिवा चारा न था
ये गलत था तो जरा तू ही बता, करता भी क्या
साँस लेना भी वहाँ दुश्वार था मेरे लिए
दूर तक थी सिर्फ ज़हरीली हवा, करता भी क्या
----------------- मनोज अबोध--------------
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