यूँ तो लोग हजार मिले
तुम जैसे दो-चार मिले
अक्स तो अपना छोड़ा ही
जिससे हम इकबार मिले
उसको क्या दरकार भला
जिसको माँ का प्यार मिले
चाहत, नफरत, हमदर्दी
कुछ तो आख़िरकार मिले
प्रेमकथा दो शब्दों की ?
कुछ इसको विस्तार मिले
चाह बहुत थी मिलने की
मिलके लगा बेकार मिले
-------- मनोज अबोध
तुम जैसे दो-चार मिले
अक्स तो अपना छोड़ा ही
जिससे हम इकबार मिले
उसको क्या दरकार भला
जिसको माँ का प्यार मिले
चाहत, नफरत, हमदर्दी
कुछ तो आख़िरकार मिले
प्रेमकथा दो शब्दों की ?
कुछ इसको विस्तार मिले
चाह बहुत थी मिलने की
मिलके लगा बेकार मिले
-------- मनोज अबोध
No comments:
Post a Comment