तूफान हो कि बारिश,
सूखी लताएं पत्ते,
इक ऐसा वक्त भी था
क्या बताऊँ कि मेरे साथ वो क्या-क्या चाहे ..... वो न तितली न वो जुगनू न ही तारा चाहे........
दर्द का सिलसिला भी नहीं
कोई शिकवा गिला भी नहीं ।
कोशिशें भी न ज्यादा हुईं
आप जैसा मिला भी नहीं ।।
एक टूटी छत लिए बरसात का स्वागत करूँ,
अब भी क्या बिगड़े हुए हालात का स्वागत करूँ ।
अपना घर जलने के ग़म को भूल भी जाऊँ,मगर
बस्ती-बस्ती किस तरह आपात का स्वागत करूँ ।
मातहत होने का यह तो अर्थ हो सकता नहीं,
उनके हर आदेश का, हर बात का स्वागत करूँ ।
बाप हूँ, ये सच है, लेकिन इसका मतलब नहीं,
रह के चुप, बच्चों के हर उत्पात का स्वागत करूँ ।
हाथ मेरा, तेरे हाथों में जो रह पाए यूँ ही ,
मुस्कुराकर मैं सभी हालात का स्वागत करूँ ।
जब खुलें नींदें मेरी तेरे नयन की भोर हो,
तेरी ज़ुल्फ़ों की घनेरी रात का स्वागत करूँ ।
अपने आप से लड़ता मैं
यानी, ख़ुद पर पहरा मैं
वो बोला-नादानी थी
फिर उसको क्या कहता मैं
जाने कैसा जज़्बा था
माँ देखी तो मचला मैं
साथ उगा था सूरज के
साँझ ढली तो लौटा मैं
वो भी कुछ अनजाना-सा
कुछ था बदला-बदला मैं
झूठ का खोल उतारा तो
निकला सीधा सच्चा मैं
क्या होगा अंजाम, न पूछ
सुबह से मेरी शाम, न पूछ
आगंतुक का स्वागत कर
क्यों आया है काम न पूछ
मेरे भीतर झाँक के देख
मुझसे मेरा नाम न पूछ
पहुँच से तेरी बाहर हैं
इन चीज़ों के दाम न पूछ
रीझ रहा है शोहरत पर
कितना हूँ बदनाम न पूछ
मिलके चलना बहुत ज़रूरी है
अब सँभलना बहुत ज़रूरी है
गुत्थियाँ हो गईं जटिल कितनी
हल निकलना बहुत ज़रूरी है
आग बरसा रहा है सूरज अब
दिन का ढलना बहुत ज़रूरी है
जड़ न हो जाएँ चाहतें अपनी
हिम पिघलना बहुत ज़रूरी है
हम निशाने पे आ गए उसके
रुख़ बदलना बहुत ज़रूरी है
है अँधेरा तो प्यार का दीपक
मन में जलना बहुत ज़रूरी है